सागर। भाषा. बुंदेलखण्ड ही नहीं शायद पूरी दुनिया में भी ऐसे उदाहरण बिरले ही होगें, जिसमें किसान खुशी-खुशी अपने खेत की खड़ी फसल मवेशियों के चरने के लिए छोड़ दे और वो भी पशुओं को आमंत्रण देकर। लेकिन, बुंदेलखण्ड के सागर जिले के एक गांव में यह अजूबा एक दो साल से नहीं बल्कि चार सदियों से होता आ रहा है।Also Read At YAHOO-JAGRAN, Dainik Bhaskar
मप्र के सागर जिले में राहतगढ़-विदिशा मार्ग पर बसे ग्राम रजौला में हर वर्ष पूस की अमावस्या जश्न का दिन होता है। इस साल भी 16 दिसम्बर को पौ फटते ही गांव के बुजुर्ग नर -नारी , युवा व बच्चे स्नान -ध्यान कर अपने अपने गाय , बैल , बछड़ों को लेकर घर से निकल पड़े और उन्हें लहलहाती फसलों से भरे खेत के बीच छोड़ देते हैं।
पशु जब गेहूं, चना, ज्वार और मसूर की हरी -भरी फसल चरने में मशगूल हो जाते है तब गांव के लोग भी टोली बनाकर ढ़ोल-नगाड़े बजाते और भजन गाते हुए मस्ती के साथ खेतों के बीच घूमते रहते है। इस मौके पर गांव में सामूहिक भोज भंडारा का भी आयोजन किया जाता है।
इस अनोखी परंपरा के बारे में जिला पंचायत सागर के सदस्य भगवान सिंह लोधी ने बताया कि पूस की अमावस्या को खेतों में खड़ी फसल चरने के लिए पशुओं को छोड़ने की परंपरा 400 साल से भी ज्यादा पुरानी है। लोधी के मुताबिक एक किंवदंती है कि एक बार गांव के खेतों में कोई पैदावार नहीं हुई। तब गांव के बड़े-बूढ़ों ने बिगड़ी फसल गौमाता को दान करने को कहा था और इसके बाद आने वाले साल में फसल अच्छी हुई थी। बस तभी से गांव के हजारों गाय-बैल और बछड़ों को खेतों में खड़ी फसल चरने छोड़ देने की एक परंपरा बन गई।
उन्होंने बताया कि खेतों में पशुओं को छोड़ने के दूसरे दिन ऐसा लगता ही नहीं है कि फसल को कोई नुकसान हुआ है। इसीलिए ग्रामीणजन पूरी आस्था और भक्तिभाव के साथ इस परंपरा का पालन करते चले आ रहे हैं।
सदियों पुरानी इस परंपरा की प्रशंसा करते हुए गांव के ही बुजुर्ग बाबूसिंह बताते हैं कि पूर्वजों की इस परंपरा के प्रति ग्रामीणजनों के समर्पण की मिसाल है कि आयोजन के एक दिन पूर्व गांव का चौकीदार घर-घर जाकर सबको निमंत्रण देता हेै कि सभी अपने मवेशी लेकर खेतों में पहुंचें। इसी मौके पर गांव की करीब 800 की आबादी को सामूहिक भोज भी दिया जाता है।
पूस की अमावस्या के जश्न के मौके पर विशेष अतिथि के रूप में ग्राम रजौली पहुंचे जिला पंचायत सागर के अध्यक्ष हरवंश राठौर ने बताया कि इस अनूठी परंपरा को देखकर पता चलता है कि आज भी भारतीय संस्कृति में गौवंश का कितना महत्व है। शायद इसी परंपरा के चलते खेत में मवेशियों के घुस जाने पर होने वाले विवाद इस गांव में सामने नहीं आते है।
मप्र के सागर जिले में राहतगढ़-विदिशा मार्ग पर बसे ग्राम रजौला में हर वर्ष पूस की अमावस्या जश्न का दिन होता है। इस साल भी 16 दिसम्बर को पौ फटते ही गांव के बुजुर्ग नर -नारी , युवा व बच्चे स्नान -ध्यान कर अपने अपने गाय , बैल , बछड़ों को लेकर घर से निकल पड़े और उन्हें लहलहाती फसलों से भरे खेत के बीच छोड़ देते हैं।
पशु जब गेहूं, चना, ज्वार और मसूर की हरी -भरी फसल चरने में मशगूल हो जाते है तब गांव के लोग भी टोली बनाकर ढ़ोल-नगाड़े बजाते और भजन गाते हुए मस्ती के साथ खेतों के बीच घूमते रहते है। इस मौके पर गांव में सामूहिक भोज भंडारा का भी आयोजन किया जाता है।
इस अनोखी परंपरा के बारे में जिला पंचायत सागर के सदस्य भगवान सिंह लोधी ने बताया कि पूस की अमावस्या को खेतों में खड़ी फसल चरने के लिए पशुओं को छोड़ने की परंपरा 400 साल से भी ज्यादा पुरानी है। लोधी के मुताबिक एक किंवदंती है कि एक बार गांव के खेतों में कोई पैदावार नहीं हुई। तब गांव के बड़े-बूढ़ों ने बिगड़ी फसल गौमाता को दान करने को कहा था और इसके बाद आने वाले साल में फसल अच्छी हुई थी। बस तभी से गांव के हजारों गाय-बैल और बछड़ों को खेतों में खड़ी फसल चरने छोड़ देने की एक परंपरा बन गई।
उन्होंने बताया कि खेतों में पशुओं को छोड़ने के दूसरे दिन ऐसा लगता ही नहीं है कि फसल को कोई नुकसान हुआ है। इसीलिए ग्रामीणजन पूरी आस्था और भक्तिभाव के साथ इस परंपरा का पालन करते चले आ रहे हैं।
सदियों पुरानी इस परंपरा की प्रशंसा करते हुए गांव के ही बुजुर्ग बाबूसिंह बताते हैं कि पूर्वजों की इस परंपरा के प्रति ग्रामीणजनों के समर्पण की मिसाल है कि आयोजन के एक दिन पूर्व गांव का चौकीदार घर-घर जाकर सबको निमंत्रण देता हेै कि सभी अपने मवेशी लेकर खेतों में पहुंचें। इसी मौके पर गांव की करीब 800 की आबादी को सामूहिक भोज भी दिया जाता है।
पूस की अमावस्या के जश्न के मौके पर विशेष अतिथि के रूप में ग्राम रजौली पहुंचे जिला पंचायत सागर के अध्यक्ष हरवंश राठौर ने बताया कि इस अनूठी परंपरा को देखकर पता चलता है कि आज भी भारतीय संस्कृति में गौवंश का कितना महत्व है। शायद इसी परंपरा के चलते खेत में मवेशियों के घुस जाने पर होने वाले विवाद इस गांव में सामने नहीं आते है।
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