सागर. तिलकगंज स्थित कांजी हाउस की बेशकीमती जमीन नगर निगम द्वारा भू-माफियाओं को कौंड़ियों के दाम बेचकर वहां व्यवसायिक काम्पलेक्स बनाए जाने के मामले में हाईकोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए हैं। जबलपुर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ए.के. पटनायक, जस्टिस अजीत सिंह की युगल पीठ ने मंगलवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।
कोर्ट ने महापौर प्रदीप लारिया व अन्य को नोटिस जारी करते हुए यह अंतरिम व्यवस्था दी है। यह जनहित याचिका एडवोकेट हैल्प लाइन के संयोजक जगदेव सिंह ठाकुर की ओर से हाईकोर्ट में दायर की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि तिलकगंज वार्ड की 4 हजार वर्गफीट जमीन पर बने कांजी हाउस को व्यवसायिक परिसर के निर्माण के लिए बेच दिया गया था।
इस जमीन की कीमत पांच करोड़ रुपए है जबकि नगर निगम ने उसे मात्र 4 लाख 75 हजार रुपए में भू-माफियाओं को बेच दी। याचिका में पूर्व महापौर मनोरमा गौर, वर्तमान महापौर प्रदीप लारिया और निगम आयुक्त रत्नाकर सिंह चौहान को कथित रूप से जिम्मेदार ठहराया गया है। इसमें इन सभी लोगों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज कर सरकार व नगर निगम को हुई क्षति की भरपाई कराए जाने की मांग की गई हैं। पैरवी अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद सिंह ने की।
6 सप्ताह में जवाब मांगा - हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर स्थगन आदेश जारी कर दिया है। कोर्ट ने काम्पलेक्स की प्रक्रिया पर रोक लगाते हुए 6 स्पताह में नोटिस का जवाब प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।
कहां से हुई शुरुआत- निगम की जमीन को कौड़ियों के दाम बेचने की शुरुआत पूर्व महापौर मनोरमा गौर के कार्यकाल से हुई थी। उन्होंने वर्ष 2001 में शासन को पत्र भेजकर उक्त जमीन का व्यवसायिक उपयोग करने की मंजूरी मांगी थी।
मंजूरी की प्रत्याशा में वर्ष 2002 में नीलामी के लिए टेंडर बुलाए गए थे। पूर्व परिषद की इस कार्रवाई की पुष्टि वर्तमान परिषद में की। 2 फरवरी 09 को महापौर प्रदीप लारिया और निगम आयुक्त श्री चौहान ने 5 करोड़ रुपए की जमीन मात्र 4 लाख 75 हजार रुपए में बेच दी।
इस संबंध में कलेक्टर हीरालाल त्रिवेदी ने निगम आयुक्त रत्नाकर सिंह चौहान को मंगलवार को नोटिस जारी किया है। इसमें उल्लेख किया है कि कांजी हाउस की जमीन का व्यवसायिक उपयोग करने की अनुमति नगर निगम को दी थी। निगम ने उक्त जमीन बेच दी और खुद ने व्यवसायिक उपयोग नहीं किया है। अत: क्यों न उक्त जमीन की व्यवसायिक अनुमति निरस्त कर दी जाए। नोटिस में श्री त्रिवेदी ने निगम आयुक्त को यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने महापौर प्रदीप लारिया व अन्य को नोटिस जारी करते हुए यह अंतरिम व्यवस्था दी है। यह जनहित याचिका एडवोकेट हैल्प लाइन के संयोजक जगदेव सिंह ठाकुर की ओर से हाईकोर्ट में दायर की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि तिलकगंज वार्ड की 4 हजार वर्गफीट जमीन पर बने कांजी हाउस को व्यवसायिक परिसर के निर्माण के लिए बेच दिया गया था।
इस जमीन की कीमत पांच करोड़ रुपए है जबकि नगर निगम ने उसे मात्र 4 लाख 75 हजार रुपए में भू-माफियाओं को बेच दी। याचिका में पूर्व महापौर मनोरमा गौर, वर्तमान महापौर प्रदीप लारिया और निगम आयुक्त रत्नाकर सिंह चौहान को कथित रूप से जिम्मेदार ठहराया गया है। इसमें इन सभी लोगों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज कर सरकार व नगर निगम को हुई क्षति की भरपाई कराए जाने की मांग की गई हैं। पैरवी अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद सिंह ने की।
6 सप्ताह में जवाब मांगा - हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर स्थगन आदेश जारी कर दिया है। कोर्ट ने काम्पलेक्स की प्रक्रिया पर रोक लगाते हुए 6 स्पताह में नोटिस का जवाब प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।
कहां से हुई शुरुआत- निगम की जमीन को कौड़ियों के दाम बेचने की शुरुआत पूर्व महापौर मनोरमा गौर के कार्यकाल से हुई थी। उन्होंने वर्ष 2001 में शासन को पत्र भेजकर उक्त जमीन का व्यवसायिक उपयोग करने की मंजूरी मांगी थी।
मंजूरी की प्रत्याशा में वर्ष 2002 में नीलामी के लिए टेंडर बुलाए गए थे। पूर्व परिषद की इस कार्रवाई की पुष्टि वर्तमान परिषद में की। 2 फरवरी 09 को महापौर प्रदीप लारिया और निगम आयुक्त श्री चौहान ने 5 करोड़ रुपए की जमीन मात्र 4 लाख 75 हजार रुपए में बेच दी।
इस संबंध में कलेक्टर हीरालाल त्रिवेदी ने निगम आयुक्त रत्नाकर सिंह चौहान को मंगलवार को नोटिस जारी किया है। इसमें उल्लेख किया है कि कांजी हाउस की जमीन का व्यवसायिक उपयोग करने की अनुमति नगर निगम को दी थी। निगम ने उक्त जमीन बेच दी और खुद ने व्यवसायिक उपयोग नहीं किया है। अत: क्यों न उक्त जमीन की व्यवसायिक अनुमति निरस्त कर दी जाए। नोटिस में श्री त्रिवेदी ने निगम आयुक्त को यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है।
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