01 March 2010

होली पर रिश्तों को मिठास के रंग में रंगने की परंपरा है-गेहर

गेहर एक खास तरह का व्यंजन है
रिश्ते व परंपराएं जीवन को ठण्डी हवा के झोंकों की तरह तरोताजा कर करतीं रहतीं है। लेकिन सिंधी समाज की एक परंपरा ऐसी है जो रिश्तों मे मिठास तो घोलती ही है साथ ही वतन की भूली-बिसरी यादों को भी ताजा कर जाती है।
जब सारा देश होली के रंगों मे सराबोर हो रहा होता है। उसी समय देश और विदेश में रहने वाले सिंधी समाज के लोग रिश्तों मे मिठास का रंग भरने मे लगे होते हैं। होली खेलने के दिन धुरेड़ी से लेकर रंगपंचमी तक दुनिया का शायद ही कोई ऐसा सिंधी परिवार होगा जो अपने रिश्तेंदारों खासकर बेटियों की ससुराल में गेहर भेजने से बचा रह जाता हो।
गेहर एक खास तरह का व्यंजन है। जो मेंदा से बनता है। जलेबी जैसा ही घुमावदार होता है। बस फर्क इतना होता है कि यह जलेबी की भांति शीरा मे डूबा नहीं रहता है। आकार मे जलेबी से बड़ा व जलेबी से कहीं ज्यादा छोटी-छोटी घुमावदार व आपस में गुंथी कड़ियों से बना होता है। स्वाद मे मिठास से भरे सिंधी समाज के इस प्रिय व्यंजंन को जो भी खाता है इसका मुरीद हो जाता है।
मप्र के सागर शहर मे गेहर बनाने वाले कुछ चुनिंदा करीगर ही बचे हैं। उन्हीं मे से एक खूबामल का कहना है कि होली से रंगपंचमी तक वे रोजाना कम से कम दो से तीन क्विंटल गेहर बनाते हैं। जो शाम होने से पहले ही बिक जाती है। नयाबाजार स्थित एक अन्य दुकान के मालिक निर्मल बजाज का कहना है कि उनके पास तो होली आने के हफ़ते भर पहले से गेहर के आर्डर आने लगते है।
एक बहुराष्ट्रीय केबिल नेटवर्क कंपनी के मप्र के जनसंपर्क अधिकारी श्री सुशील बजाज बताते हैं आज कीे भागमभाग से भरी जिन्दगी में भी वे गेहर भेजने से नहीं चूकते हैं। लेकिन उनकी नजर में सिंधी समाज की नई पीढ़ी की तुलना में बुजुर्गो के लिए यह परंपरा कुछ खास अहमियत रखती है। उन्हें यह परंपरा रिश्तों मे मिठास घोलने के अलावा वतन (अविभाजित भारत के सिंध प्रांत ) की खटटी-मीठी यादों भी ताजा कराती है। गेहर का स्वाद उन्हें रिश्तों की मिठास के अहसास के साथ-साथ बीते दिनों की याद भी दिलाती है।
गेहर भेजने की पंरंपरा की प्राचीनता के बारे मे समाज के वयोवृद्ध करमचंद सोनवानी बताते हैं कि खाने-खिलाने की यह परंपरा सदियों पुरानी है। जहां तक मुझे याद है सिंध प्रांत जो अब पाकिस्तान मे है मे नई फसल आने पर किसान खुशी का इजहार करने के लिए एक दूसरे के घर ''गेहर'' भेजते थे। समय गुजरने के साथ होली के अवसर पर बेटियों की ससुराल मे गेहर भेजना भी इस परंपरा का हिस्सा बन गया है। होली के मौके पर "गेहर" का बेटियों की ससुराल भेजे जाने की परंपरा की समाज मे कितनी अहमियत है इस बारे में सिंधी पंचायत के अध्यक्ष लहरचंद टेकवानी बताते हैं कि जब तक अपनी बहन व बेटियों के घर गेहर पहुंचने की खबर नहीं मिल जाती तब तक हम लोग खुद भी घरों मे गेहर का स्वाद नहीं चखते हैं
रंगों के त्यौहार व गेहर के मेल पर श्रीमती शकुंतला पिंजवानी कहतीं हैं कि जितनी खुशी हमें पीहर से गेहर मिल जाने पर होती है उतनी ही खुशी बेटियों के घर गेहर पहुंचने की होती है और इन खुशियों के बीच हमें होली के रंग कुछ ज्यादा ही चटख नजर आते है।

0 comments:

 
© Media Watch Group-Copyright to Visitors Sagar Watch